कोहिमा। नगालैंड में 25 नगर निकायों के लिए दो दशक बाद चुनाव कराए गए हैं। इसके लिए बुधवार को वोट पड़े थे। वहीं आज मतगणना हो रही है। राज्य निर्वाचन आयोग के एक अधिकारी ने बताया कि 10 जिलों में तीन नगरपालिकाओं और 21 नगर परिषदों समेत 24 शहरी स्थानीय निकायों के लिए 16 केंद्रों पर मतगणना सुबह आठ बजे शुरू हुई। अधिकारी ने बताया कि एनडीपीपी ने कोहिमा में चीफोबोजोउ नगर परिषद में जीत हासिल की और शहरी निकाय के सभी नौ वार्डों में इसके उम्मीदवार निर्विरोध चुने गए। 26 जून को हुए निकाय चुनावों में 2.23 लाख से अधिक मतदाताओं में से लगभग 82 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। नगालैंड राज्य निर्वाचन आयोग के अधिकारियों ने बताया कि पहली बार महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण के साथ शहरी स्थानीय निकाय चुनाव कराए गए। पूर्वोत्तर के इस राज्य में यह एक ऐतिहासिक चुनाव है क्योंकि तीन नगरपालिकाओं और 22 नगर परिषद के लिए चुनाव 20 वर्ष के अंतराल के बाद कराया गया। इससे पहले, नगर निकाय चुनाव 2004 में हुआ था। सरकार ने पहले भी कई बार शहरी स्थानीय निकायों के लिए चुनाव की घोषणा की थी, लेकिन महिलाओं के लिए आरक्षण, भूमि तथा संपत्तियों पर कर के खिलाफ जनजातीय संगठनों और नागरिक संस्थाओं की आपत्तियों के कारण चुनाव नहीं कराया जा सका। इस चुनाव में 11 राजनीतिक दलों के 523 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला होगा। अन्य 64 उम्मीदवार नगर निकायों में निर्विरोध चुने गए।
ये दल मैदान में
चुनाव लड़ रहे दलों में एनडीपीपी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), कांग्रेस, नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ), राइजिंग पीपुल्स पार्टी, आरपीआई (आठवले), जनता दल (यूनाइटेड), लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) शामिल हैं। नागालैंड में कुल 39 नगर परिषदें हैं, लेकिन राज्य के पूर्वी हिस्से के छह जिलों में 14 शहरी स्थानीय निकायों में कोई चुनाव नहीं हुआ क्योंकि ईस्टर्न नगालैंड पीपुल्स ऑर्गेनाइजेशन (ईएनपीओ) ने क्षेत्र के छह जिले में चुनावों में भाग नहीं लेने का फैसला किया था। छह पूर्वी जिलों में निवास करने वाली सात नगा जनजातियों की सर्वोच्च संस्था ईएनपीओ ‘फ्रंटियर नगालैंड क्षेत्र’ की मांग करती रही है। उसका दावा है कि इस क्षेत्र को वर्षों से नजरअंदाज किया गया है। ईएनपीओ इलाके में 14 नगर परिषद हैं। इस इलाके से 59 नामांकन पत्र स्वीकार किए गए थे, लेकिन आदिवासी संगठनों ने उम्मीदवारों को अपना नामांकन वापस लेने के लिए मजबूर किया। ईएनपीओ ने राज्य की एकमात्र लोकसभा सीट के लिए 19 अप्रैल को हुए चुनाव में भी भाग नहीं लिया था।